उराँव समुदाय की पारंपरिक युवागृह परंपरा: जोंख़ एड़पा और पेल्लो एड़पा

उराँव समुदाय की पारंपरिक युवागृह परंपरा: जोंख़ एड़पा और पेल्लो एड़पा



उराँव (कुड़ुख) जनजाति में पारंपरिक रूप से लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग युवागृह बनाए जाते थे जिन्हें क्रमशः जोंख़ एड़पा (लड़कों का डॉरमिटरी) और पेल्लो एड़पा (लड़कियों का डॉरमिटरी) कहते थे। ये युवागृह सामाजिक-शैक्षिक संस्थाएँ थीं जहाँ किशोरों को ग्राम्य जीवन शैली, परंपराएँ और कौशल सिखाए जाते थे। पुराने समय में इन्हें “BOYS DORMITORY” और “GIRLS DORMITORY” भी कहा जाता था। कई इतिहासकारों के अनुसार, यह व्यवस्था उराँव समाज की “पढ़हा-ब्यवस्था” (पारंपरिक पंचायत व्यवस्था) का अविभाज्य अंग थी। उराँव जनविश्वास में यह माना जाता है कि यह एक लयबद्ध सामाजिक शिक्षा प्रणाली है, जो गांव के युवक-युवतियों को सामाजिक जीवन जीने और सामूहिक कौशल सीखने का केंद्र प्रदान करती थी।

जानकारियों से मालूम होता है कि गाँवों में बनाए जाने वाले इन युवागृहों की वास्तुकला भी विशिष्ट होती थी। उदाहरण के लिए, नागालैंड के रेंगमा जनजाति के मोरुंग (युवागृह) भवन की भव्य प्रवेशद्वार संरचना लकड़ी की कलात्मक नक्काशियों से सजी होती है।



सामाजिक निर्माण और सामूहिक शिक्षा में भूमिका :-

जोंख़ एड़पा और पेल्लो एड़पा सिर्फ आवास नहीं थे, बल्कि इनमें युवाओं को सामाजिक और सांस्कृतिक शिक्षा भी दी जाती थी। इन युवा गृहों में गाँव के बुजुर्ग पुरुष लड़कों के साथ और बुजुर्ग महिलाएँ लड़कियों के साथ रहती थीं और उन्हें दैनिक जीवन, कृषि-कौशल, घरेलू कला, लोक गीत-नृत्य व धार्मिक रीतियाँ सिखाती थीं। “उन दिनों स्कूल जैसी संस्थाएँ नहीं थीं; यही युवा गृह लड़कों और लड़कियों की विद्यालय की तरह काम करता था”। यहाँ किशोरों को आजीविका संबंधी विविध कौशल सिखाये जाते थे – जैसे दासों से उपयोगी बस्तुओं का निर्माण (रस्सी, हल, फावड़ा आदि), शिकार की विधियाँ, युद्ध कला, लोक गान व नृत्य, मंत्रोच्चारण, और ग्राम्य कला-शिल्प। साथ ही इन अभियानों के दौरान आपसी प्रेम, मेल-जोल और सामूहिक कार्य (मदइत) की भावना भी विकसित की जाती थी। कुड़ुख परंपरा में मदइत अर्थात् सहकारी कामों के माध्यम से समूह में मिलकर कुछ हासिल करने की कला सिखाई जाती थी।

इस प्रकार जोंख़ एड़पा एवं पेल्लो एड़पा ने पारंपरिक सामूहिक शिक्षा और संस्कृति संरक्षण में अहम भूमिका निभाई। इन संस्थाओं ने युवाओं को ग्राम संस्कृति और परंपरागत ज्ञान से जोड़ कर सामाजिक अनुशासन, आदर्श और एकजुटता की भावना विकसित की। साथ ही यहाँ युवा धार्मिक संस्कारों, त्योहारों तथा सामुदायिक निर्णय-प्रक्रिया (पढ़हा व्यवस्था) के बारे में भी जानकारी प्राप्त करते थे, जिससे संस्कृति संप्रेषण में सहायता मिलती थी।



उराँव समुदाय में सांस्कृतिक आयोजनों जैसे सरहुल और कर्मा से भी युवा जुड़ते थे। सरहुल के अवसर पर युवा रंग-बिरंगे पारंपरिक वस्त्र पहनकर नाच-गीत करते और सामूहिक प्रसाद चढ़ाते हैं। (ऊपर चित्र: महिला कलाकार पारंपरिक लाल-सफ़ेद वेशभूषा में सरहुल नृत्य करती हुई।) ये उत्सव युवा सामाजिक शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण का एक माध्यम थे।

वर्तमान स्थिति :-

वर्तमान में आधुनिक शिक्षा और शहरीकरण के कारण यह परंपरागत युवागृह प्रणाली लगभग समाप्ति की कगार पर है। कई स्थानों पर जोंख़ एड़पा/पेल्लो एड़पा अब नहीं मिलते; जैसे एक हाल की अध्ययन में एक गाँव में पारंपरिक धुमकुड़िया (युवा गृह) ना होने का उल्लेख किया गया है। कुड़ुख टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार यह व्यवस्था “विलुप्ति की स्थिति में है; आधुनिक शिक्षा के प्रसार के बाद यह इतिहास के पन्नों में सिमट चुका है”। विश्व स्तर पर भी आदिवासी कई समुदायों में ऐसे पारंपरिक युवक-गृह अब घट रहे हैं। हालांकि कुछ दूरदराज के इलाकों में समारोह या आदिवासी मेलों में इनका सांकेतिक रूप (जैसे मोरुंग) दिखाई देता है, पर रोजमर्रा की जीवनशैली में ये प्रणाली अब सक्रिय रूप से नहीं चल रही।

रोशन टोप्पो के प्रयास और कुरुख प्राइड :-


रोशन टोप्पो कुड़ुख संस्कृति के उत्साही प्रचारक हैं और उन्हीं द्वारा स्थापित ‘कुरुख प्राइड’ संगठन युवा शिक्षा व संस्कृति संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है। उनके लेखों में जोंख़ एड़पा और पेल्लो एड़पा की ऐतिहासिक महत्ता को भी उजागर किया गया है। रोशन टोप्पो और उनकी टीम इन प्राचीन परंपराओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम करते हैं – वे कुड़ुख भाषा एवं लोककला पर कार्यशालाएँ, युवा शिविर और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। (उदाहरणतः, कुड़ुख प्राइड के माध्यम से पारंपरिक लोकगीत-संगीत और नृत्य को एकत्रित कर नए रूप में प्रस्तुत किया जाता है।) उनका मानना है कि सांस्कृतिक जागरूकता से आदिवासी युवाओं का सशक्तिकरण होता है।

‘कूँड़ूख प्राइड’ संगठन: उद्देश्य, कार्य और युवाओं का सशक्तिकरण

कुरुख प्राइड का मुख्य उद्देश्य कुड़ुख (उराँव) समुदाय की विशेष पहचान, भाषा और संस्कृति को बचाए रखना है। संगठन विभिन्न माध्यमों से संस्कृति का प्रचार-प्रसार करता है: उदाहरण के लिए, यह लोक गीतों, नृत्यों, त्यौहारों और परंपराओं पर आधारित सामग्री को संकलित और साझा करता है। साथ ही कुड़ुख समुदाय के इतिहास और परम्परागत ज्ञान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शिक्षा एवं शैक्षिक कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं। भाषा-संरक्षण इनके प्रमुख कार्यों में से एक है; कुड़ुख भाषा और लिपि को पुनर्जीवित करने के प्रयास इस संगठन की प्राथमिकता है।

इन पहलुओं के माध्यम से ‘कुरुख प्राइड’ समुदाय में गर्व और आत्म-सम्मान जागृत करने का काम करता है। यह संगठन युवाओं को अपनी संस्कृति के साथ जोड़ने, अपनी कहानियाँ साझा करने और अपनी पहचान पर गर्व महसूस करने के अवसर प्रदान करता है। कुल मिलाकर, रोशन टोप्पो के नेतृत्व में कुरुख प्राइड आदिवासी युवाओं को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखते हुए उनमें सशक्तिकरण की भावना बढ़ाने का कार्य कर रहा है।



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