फुल स्टोरी : सिरमटोली सरना स्थल विवाद और लूट का घटनाक्रम



लेखक - रोशन टोप्पो
झारखंड के रांची जिले के सिरमटोली गाँव में स्थित केंद्रीय सरना स्थल आदिवासी समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह प्रकृति-पूजा की परंपरा पर आधारित सरना धर्म का एक प्रमुख केंद्र है। प्रत्येक वर्ष यहाँ सरहुल जैसे बड़े त्योहारों के दौरान लाखों आदिवासी एकत्रित होते हैं। सरमटोली स्थित यह स्थल सैंकड़ों वर्षों से आदिवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर रहा है। आदिवासी मान्यता के अनुसार इस स्थल को उनके देवता – मारांगबुरू, धर्मेश, सिंगबोंगा का निवास माना जाता है और वे इसे “पवित्र सरना स्थल” कहते हैं।


मार्च-अप्रैल 2025 के समय सिरमटोली सरना स्थल को लेकर विवाद चरम पर था। स्थानीय आदिवासी समुदाय ने आरोप लगाया कि सरकार के फ्लाईओवर निर्माण के नाम पर उनकी पूजा स्थल की जमीन पर अतिक्रमण हो रहा है। विशेषकर सिरमटोली फ्लाईओवर के रैंप (उठाया मार्ग) के पास केवल 14 फुट चौड़ी जगह छोड़ी गयी थी, जो आदिवासियों के अनुसार उनकी शोभायात्राओं के लिए नाकाफी है। आदिवासी संगठनों ने इसे जमीन की “लूट” और धार्मिक स्थल की अवहेलना बताया। केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि पुल के नक्शे में सरना स्थल का महत्व पहले ही बताया गया था, फिर भी उनसे पूजा स्थल की जमीन माँगी गई। इसी तरह केंद्रीय सरना समिति के महासचिव बाबुलू मुंडा ने इसे “हमारी विरासत की लूट” बताया और कहा, “यह सिर्फ जमीन नहीं, हमारी संस्कृति की धड़कन है”।

विवाद के दौरान कई आदिवासी नेता और संगठन सक्रिय रहे। केंद्रीय सरना समिति के अजय तिर्की और पूर्व राज्य मंत्री गीताश्री उरांव जैसे नेता विरोध में आगे थे। 2 अप्रैल 2025 को (सरहुल के दिन) मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जब सरमटोली सरना स्थल पर पूजा-अर्चना करने आए, तो काली पट्टी बांधे प्रदर्शनकारियों ने उनका विरोध किया। आदिवासी संगठनों ने धरना, मशाल जुलूस और रैलियाँ निकालीं। 30 मार्च 2025 को सिरमटोली के पास बंस तालाब से एक विशाल मार्च निकाला गया, जिसमें पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों ने कई बैरिकेडिंग तोड़ी और रैंप हटाने की मांग पर अड़े रहे। स्थानीय युवा और महिलाएँ भी इन प्रदर्शनों में भागीदार रहीं। झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ स्तरीय आयोग की नियुक्ति समेत जनजाति समुदाय के नेता भी मौके पर पहुँचे।

प्रदर्शनकारियों की मांगों को समर्थन देते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) की सदस्य आशा लकड़ा ने 13 मई 2025 को मामले की जांच की। उन्होंने जांच के बाद कहा कि सिरमटोली का सरना स्थल आदिवासियों के लिए अत्यंत पवित्र है और यहाँ पर सालों से लाखों लोग सरहुल मनाने आते हैं। आयोग ने झारखंड सरकार को रैंप निर्माण कार्य तत्काल रोकने की सलाह दी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, नेशनल कमीशन फॉर एसटी ने इसे आदिवासी समुदाय के भावनाओं की अवहेलना बताया और मामले की सुनवाई के दौरान कार्य को रोकने का निर्देश दिया।

पुलिस और प्रशासन ने भी घटनास्थल पर दखल दिया। रैंप के विरोध के दौरान भारी पुलिस बल तैनात किया गया। झड़पों को रोकने के लिए मुख्य मार्गों पर बैरिकेडिंग लगाई गई। प्रदर्शनकारी बैरिकेड तोड़ कर आगे बढ़ गए, और पुलिस से हाथापाई भी हुई, यहाँ तक कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिसकर्मी की राइफल छीनने का प्रयास किया। अंततः स्थानीय उपायुक्त मंजुनाथ भजंत्री, रांची के एसएसपी चंदन सिन्हा तथा एसडीओ उत्कर्ष कुमार प्रदर्शनकारियों से वार्ता करने पहुँचे और स्थिति को नियंत्रित किया। प्रशासन ने आदिवासी नेताओं की लगातार शांति व सुरक्षा की अपील की और भविष्य में बातचीत से समाधान निकालने का आश्वासन दिया।

 *चित्र: सिरमटोली सरना स्थल के पास विरोध मार्च में शामिल आदिवासी लोग (मार्च 2025)*.

मीडिया रिपोर्टों ने इस विवाद को विस्तार से कवर किया। स्थानीय समाचार पत्र प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, हिंदुस्तान और अन्य चैनलों ने सिरमटोली रैंप-विवाद की खबरें प्रमुखता से दिखाई। राष्ट्रीय समाचार माध्यम जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि “सिरमटोली फ़्लाइओवर रैंप से केन्द्रीय सरना स्थल तक पहुंच में रुकावट पैदा हो रही है, जहाँ हर साल हजारों आदिवासी सरहुल मनाने आते हैं”। ThePrint ने आदिवासी संगठनों की चिंताओं को प्रकाशित किया और आशा लकड़ा के उद्धरण दिए कि यह स्थल आदिवासियों का “महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र” है। तथ्यों की पड़ताल करने वाली भारतीय एक्सप्रेस की स्टोरी में भी सरमटोली की ऐतिहासिक भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

आदिवासी समुदाय की प्रतिक्रिया में गहरी नaraazगी देखी गई। कई आदिवासी संगठनों ने पूरे झारखंड में सिरमटोली रैंप के विरोध में मानव श्रृंखला और मार्च निकाले। आदिवासियों ने सरकारी मंच पर लिखित शिकायतें देकर दोषियों की गिरफ्तारी की मांग की। केंद्रीय सरना समिति के प्रवक्ता ने बताया, “यह पूजा स्थल कोई सामान्य जगह नहीं, हमारी सांस्कृतिक विरासत है। कोई बाधा इसे ठेस पहुँचाएगी”। स्थानीय युवाओं ने भी मुखर होकर सरकार का ध्यान अपने ओर खींचा और जोर देकर कहा कि सरना स्थल पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व: सिरमटोली का सरना स्थल प्रकृति पूजा का प्रतीक है। सरना धर्म में सखुआ (शल) वृक्ष की पूजा होती है, और इसे आदिवासी समुदाय के सबसे पावन त्यौहार सरहुल से जोड़ा जाता है। 1960 के दशक में आदिवासी नेता बाबा कार्तिक ओरांव ने यहीं से सरहुल जुलूस की शुरुआत की थी, तब से यह स्थान आदिवासियों के लिए पहचान केंद्र बन गया। वर्तमान में भी सिरमटोली सरना स्थल को आदिवासी समुदाय “धरती का मंदिर” मानता है, जहाँ प्रकृति के देवताओं को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इस स्थल की पवित्रता और ऐतिहासिक महत्व के कारण ही यहां हुई किसी भी घटना को आदिवासी भावनाओं से जोड़कर देखा गया, और विवाद ने सामाजिक-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य भी ले लिया।

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