लोको पायलट रितिका तिर्की: सपनों की पटरियों पर दौड़ती जिंदगी | Loco Pilot Ritika Tirkey Biography | Womens Achievers Award 2025

 

लोको पायलट रितिका तिर्की: सपनों की पटरियों पर दौड़ती जिंदगी

झारखंड के गुमला जिले का टोटो गांव। हरे-भरे जंगलों से घिरा, जहां सूरज की किरणें भी पेड़ों की ओट से शरमाती हुई धरती तक पहुंचती हैं। इसी गांव में, एक छोटी सी बच्ची रितिका तिर्की रोज सुबह अपने नाना-नानी के साथ खेतों और जंगलों में खेलने निकलती। नाना के किस्से, नानी की लोरियां और ट्रेन की सीटी – ये सब उसकी दुनिया के हिस्से थे।

ट्रेन? हां, ट्रेन। रितिका का ननिहाल पुरुलिया में था। हर छुट्टी में, वो अपने परिवार के साथ ट्रेन से सफर करती। छोटी सी रितिका खिड़की के पास बैठकर हवा को महसूस करती और इंजन की ओर देखती। एक बार उसने अपनी मां से पूछा, "ये ट्रेन कौन चलाता है?"
"लोको पायलट," मां ने मुस्कुराते हुए कहा।
"मैं भी चलाऊंगी," उसने मासूमियत से जवाब दिया।


सपने का बीज

ये एक साधारण बात थी, जो उस दिन एक सपने का बीज बन गई। पर रितिका को क्या पता था कि इस सपने को हकीकत बनने में कितनी मेहनत और धैर्य की जरूरत होगी।

मांडर के सेंट अन्ना गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ाई करते हुए रितिका ने खुद से वादा किया—कुछ बड़ा करना है। उनके पिता, जो एक फॉरेस्ट गार्ड थे, अक्सर कहते थे, "शिक्षा से बड़ा कोई हथियार नहीं। पढ़ाई में मन लगाओ, तो आसमान भी छोटा पड़ जाएगा।"

रितिका ने यह बात गांठ बांध ली। बारहवीं के बाद, उन्होंने रांची के बीआईटी मेसरा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान, उनके मन में अक्सर ट्रेन और लोको पायलट बनने का सपना कौंधता रहता।


सपने को दिशा

2018 का साल था। रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड ने असिस्टेंट लोको पायलट की भर्तियां निकालीं। रितिका ने बिना समय गंवाए फॉर्म भरा। परीक्षा दी। जब रिजल्ट आया, तो उनकी मेहनत रंग लाई। उनका चयन हो गया था!

धनबाद डिवीजन में पहली बार, रितिका ने एक गुड्स ट्रेन के इंजन को अपने हाथों से संभाला। जब इंजन की सीटी बजी और ट्रेन पटरियों पर दौड़ी, तो रितिका की आंखों में वही पुराना सपना झलक रहा था। वह अब एक असिस्टेंट लोको पायलट बन चुकी थीं।


वंदे भारत का सफर

2024 में रितिका को वंदे भारत ट्रेन के लिए चुना गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में, उन्होंने ट्रेन को झंडी दिखाने के साथ इंजन संभाला। यह उनके करियर का सबसे गर्वपूर्ण क्षण था।

छह दिन की विशेष ट्रेनिंग के बाद, जब उन्होंने वंदे भारत ट्रेन चलाई, तो हर कोई उनकी तारीफ कर रहा था। ये पल न केवल उनके लिए बल्कि पूरे झारखंड और आदिवासी समाज के लिए ऐतिहासिक था।


गांव की उम्मीद

जब रितिका अपने गांव लौटीं, तो वहां का नजारा बदला हुआ था। बच्चे दौड़कर उनके पास आए। महिलाएं उनसे बातें करने लगीं। सभी के चेहरे पर गर्व और खुशी झलक रही थी।

एक दिन गांव की छोटी बच्ची उनसे पूछ बैठी, "दीदी, क्या मैं भी ट्रेन चला सकती हूं?"
रितिका मुस्कुराईं। उसे गले लगाते हुए बोलीं, "क्यों नहीं? बस पढ़ाई में मन लगाओ और कभी हार मत मानो।"


रितिका का संदेश

आज, रितिका सिर्फ लोको पायलट नहीं हैं। वह एक प्रेरणा हैं। उनकी कहानी हर उस बच्ची के लिए है, जो छोटे गांवों और सीमित संसाधनों में बड़ी उड़ान का सपना देखती है।

रितिका कहती हैं, "जब मैं ट्रेन चलाती हूं, तो मुझे अपने बचपन की याद आती है। ये रास्ते मेरे सपनों की पटरियां हैं, और मेरी मंजिल अभी बाकी है।"


आगे की राह

रितिका अब भी मेहनत कर रही हैं। उनका सपना है कि वो मुख्य लोको पायलट बनें और भारतीय रेल के हर हिस्से में अपनी पहचान छोड़ें।

रितिका तिर्की की कहानी बताती है कि सपने देखना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है उन्हें पाने के लिए मेहनत करना। उनकी जिंदगी उस सीटी की तरह है, जो बताती है—गाड़ी आगे बढ़ रही है, रुकने का सवाल ही नहीं।

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