बाबा भिखराम भगत: आदिवासी समाज के नायक की प्रेरणादायक यात्रा | Aba Bhikram Bhagat Biography (Hindi)

आबा भिखराम भगत: आदिवासी समाज के नायक की प्रेरणादायक यात्रा


प्रस्तावना:

कभी किसी ने सोचा था कि एक साधारण सा लड़का जो अपने घर की गरीबी और मुश्किलों से जूझ रहा है, वह आगे चलकर अपनी मिट्टी और अपने समाज का इतना बड़ा सेवक बनेगा कि उसकी कहानी एक प्रेरणा बन जाएगी? हां, हम बात कर रहे हैं बाबा भिखराम भगत की, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी आदिवासी समाज के उत्थान, उनके अधिकारों के लिए संघर्ष और अपनी संस्कृति को बचाने में लगा दी। उनका जीवन न केवल आदिवासी समाज के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है, जो संघर्ष, सेवा और समर्पण की मिसाल पेश करता है।

बचपन और संघर्ष:

10 जनवरी 1937 को झारखंड के गुमला जिले के डुमरी प्रखंड स्थित डंडटोलो गाँव में साधू भगत और सनियों भगत उरांव के घर जन्मे भिखराम भगत का बचपन गरीबी में बीता। उनका परिवार निर्धन था, लेकिन उन्होंने कभी गरीबी को अपनी मंजिल तक पहुँचने में रोड़ा नहीं बनने दिया। बाल्यकाल में ही उनके अंदर समाज की बेहतरी के लिए कुछ बड़ा करने का सपना था।

शिक्षा का सफर:
भिखराम भगत की शिक्षा की शुरुआत बहुत कठिनाईयों से हुई। घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाया। कभी वह ट्यूशन पढ़ाकर, कभी कुलीगिरी करके, तो कभी बर्तन मांजने का काम करके अपनी किताबों का खर्च निकालते थे। दिनभर की कठिन मेहनत के बाद, रात के अंधेरे में किताबों के साथ उनका संघर्ष जारी रहता था।

1952 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और रांची कॉलेज से बीए किया। इसके बाद, उन्होंने छोटानागपुर लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की, लेकिन उन्होंने वकालत का रास्ता छोड़ दिया। उनके लिए असली उद्देश्य था आदिवासी समाज की सेवा और उनके अधिकारों की रक्षा।

आदिवासी समाज के लिए एक मिशन:

भिखराम भगत ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, सबसे पहले अपने उरांव (कुंड़ुख) समाज को जागरूक करने का संकल्प लिया। वह मानते थे कि आदिवासी समाज की असली पहचान आदि धर्म में है, और इसे बचाने का कार्य उनके जैसे लोगों का था।

भिखराम भगत ने तय किया कि वह अपने मिशन को पूरे भारत के आदिवासी क्षेत्रों तक फैलाएँगे। इसके लिए उन्होंने साइकिल का सहारा लिया। अपनी साइकिल पर सवार होकर वह झारखंड से लेकर ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, भूटान, और मध्यप्रदेश के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों में गए। उन्होंने वहां के लोगों से सीधे मिलकर उन्हें अपने धर्म, संस्कृति, और परंपराओं के महत्व के बारे में बताया।


ओडिशा में विशेष योगदान:

भिखराम भगत का ओडिशा से विशेष जुड़ाव था। उन्होंने ओडिशा में अपने जीवन का बहुत समय बिताया और यहां के आदिवासी समुदाय को "आदि धर्म" के महत्व से अवगत कराया। ओडिशा के बलिजोड़ी गाँव में उनका केंद्र बन गया। यहां उन्होंने अपनी आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को बचाने के लिए कई कदम उठाए। उनका यह संदेश था कि यदि आदिवासी समाज अपनी जड़ों से जुड़ा रहेगा तो वह किसी भी स्थिति में अपने अस्तित्व को बचा सकता है।

साधारण जीवन, असाधारण उद्देश्य:

भिखराम भगत का जीवन पूरी तरह से सादा था। उन्होंने अपनी साइकिल से यात्रा की, जहाँ कहीं भी वह गए, वहाँ के लोगों से मिलकर आदिवासी समाज को जागरूक किया। उनके पास कोई बड़ा हथियार नहीं था, लेकिन उनके पास था एक दृढ़ नायकत्व, एक ईमानदारी, और समाज के प्रति गहरी प्रतिबद्धता। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दी।

उनकी यात्राएँ और संघर्ष:

भिखराम भगत ने अपनी यात्रा के दौरान कई कठिनाइयों का सामना किया। जंगली रास्ते, भालू और अन्य जंगली जानवरों से लड़ते हुए, वह लगातार अपने मिशन को आगे बढ़ाते रहे। उनके लिए यह यात्रा सिर्फ एक भौतिक यात्रा नहीं थी, बल्कि यह एक मानसिक और आध्यात्मिक यात्रा थी, जिसमें उन्होंने अपनी जाति और समाज को जागरूक करने का काम किया।

अंतिम समय और विरासत:

बाबा भिखराम भगत ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में ओडिशा के बलिजोड़ी गाँव में ही अपना समय बिताया। यहाँ उन्होंने न केवल आदिवासी समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने का कार्य किया, बल्कि उन्होंने समाज को एकजुट भी किया। 5 जनवरी 2005 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी गाथा आज भी आदिवासी समाज के दिलों में जीवित है।

बाबा भिखराम भगत का जीवन संघर्ष और समर्पण की मिसाल है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी आदिवासी समाज के उत्थान में समर्पित कर दी। उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि अगर किसी कार्य के प्रति संकल्प दृढ़ हो, तो कोई भी कठिनाई उसे सफल होने से नहीं रोक सकती। भिखराम भगत की यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि समाज में बदलाव लाने के लिए आत्मविश्वास, मेहनत, और समर्पण की आवश्यकता होती है। उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा, और उनकी गाथा हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी।

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